इतिहास शोध संस्थान नेरी में हिमाचल प्रदेश की सामाजिक संरचना पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन

शोध संस्थान के प्रचार-प्रसार प्रमुख ऋषि भारद्वाज ने बताया कि उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा (बिहार) के पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) देवी प्रसाद तिवारी ने की, जबकि भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक प्रो. (डॉ.) हिमांशु कुमार चतुर्वेदी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। बीज वक्ता के रूप में प्रसिद्ध इतिहासकार और हिमालयी संस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. ओ.सी. हांडा ने अपने विचार रखे। विशिष्ट अतिथियों में इग्नू शिमला के उप-निदेशक डॉ. मोहन शर्मा, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति हिमाचल प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सूरत ठाकुर और नालन्दा कॉलेज ऑफ एजुकेशन झनियारी के सचिव विजय अग्निहोत्री शामिल थे।

उद्घाटन सत्र का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना से हुआ, उसके बाद नरेश मलोटिया ने संकल्प पाठ और पवन कुमार ने इतिहास पुरुष का वाचन किया। परिसंवाद संयोजक डॉ. राकेश कुमार शर्मा ने मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों का परिचय कराया और आयोजन सचिव डॉ. बिंदू साहनी ने परिसंवाद की भूमिका रखी। इस अवसर पर परिसंवाद स्मारिका का विमोचन भी किया गया।

संस्थान निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग ने अपने उद्बोधन में आगामी शोध-परियोजनाओं, विषयगत विस्तार और सम्मेलन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय इतिहास सर्व समावेशी है और हिमाचल प्रदेश की सामाजिक संरचना का अध्ययन न केवल अकादमिक दृष्टि से, बल्कि देश की सांस्कृतिक एकता और विविधता को समझने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने शोधार्थियों से तथ्यों, अभिलेखों और मौखिक परंपराओं के संरक्षण की दिशा में गंभीर प्रयास करने की अपील की।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. देवी प्रसाद तिवारी ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था के बारे में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यह ऋग्वेद पर आधारित है और यह सामाजिक संरचना निरंतरता को दर्शाती है। डॉ. ओ.सी. हांडा ने हिमाचल के इतिहास में खशों की महत्वपूर्ण भूमिका पर बात की और कहा कि हिमाचल के कुछ गांवों में आज भी प्राचीन किलों के उदाहरण मिलते हैं, जो यहां की सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा हैं।

विशिष्ट अतिथियों ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। डॉ. मोहन शर्मा ने हिमाचल को न केवल भौगोलिक, बल्कि सांस्कृतिक और अध्यात्मिक चेतना का केंद्र बताया। डॉ. सूरत ठाकुर ने हिमाचल की देव संस्कृति को समाज की एकता का प्रमुख उदाहरण बताया। विजय अग्निहोत्री ने कहा कि विकास की दौड़ में समाज तो आगे बढ़ रहा है, लेकिन मूल्य आधारित जीवन पद्धति पीछे छूट रही है।

इस कार्यक्रम के बाद छः सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें साठ से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। परिसंवाद में मध्यप्रदेश, हरियाणा, जम्मू और हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से शोधार्थी, आचार्य और विद्यार्थी शामिल हुए।